Thursday, August 16, 2012

परिंदे की कैफियत



चलो आओ की दूर चलें,
अपने घोंसले से मजबूर, चलें |

न मंजिल, न मुसाफिरखाना,
चलते चलें, सुदूर चलें |

बस चहेक उठे थे प्यार के बोल, 
राहदारी सारे, हमें घुर चलें |

तेरी परछाई का अहेसास हमें,
लगे रूह के साथ हूर चलें |

सिली सी हवा, नम है मट्टी,
दरख्तों के सायें थे मशहूर, चलें ?

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